Thursday, February 18, 2016

जन-मन में प्राण फूंकती ‘वागड़ गंगा माही’







श्रद्धा और कृतज्ञता दर्शाने का पर्व है ‘माही महोत्सव’

- कमलेश शर्मा

    प्रज्ञा उर्वरा वागड़ भूमि को सस्य स्यामल और समृद्धि से संपृक्त बनाने का एकमात्र श्रेय जाता है ‘वागड़ गंगा माही’ को। मध्यप्रदेश के अमरकंटक पर्वत से आविर्भूत होकर यह सदानीरा अपनी नहरों रूपी धमनियों से बांसवाड़ा जिले के एक बड़े क्षेत्र तक अमृत का संचार करती है और जन-मन में प्राण फूंकने वाली ‘माही’ की हरेक बूंद इस अंचल के रहवासियों में रक्त बनकर इसकी जयगाथा को बखानती प्रतीत हो रही है। इस अंचल के जन-जन के चेहरे का तेज, दिल की धड़कन, मन का उल्लास  और बाजुओं का दमखम सिर्फ और सिर्फ माही की ही देन है। विकास और उल्लास की इसी देन पर कृतज्ञ अंचल द्वारा ‘माही मैया’ के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का पर्व है ‘माही महोत्सव’, और अगले दो दिनों में संपूर्ण बांसवाड़ा जिला इसी लोकोत्सव के रंगों में रंगा नज़र आएगा। इस दौरान धरा से आसमां तक दिखेगी उल्लसित जनगंगा के मन से उठती तरंगे और श्रद्धा उमड़ाता खुशी का महासागर। 

    पौराणिक संदर्भों में भी पुण्यदायी है ‘माही मैया’: 

    माही नदी का उल्लेख पुराणों में भी किया गया है । स्कन्द पुराण के कुमारिका खण्ड में इस बात का उल्लेख है कि इन्द्रद्युम्न नामक राजा द्वारा विध्याचल के अमरकंटक पर्वतश्रेणी स्थान पर किए गए यज्ञ की अग्नि से तप्त धरा से निस्सृत जलधारा ही माही नदी है। इस तरह विध्याचल के अमरकंटक पर्वतश्रेणी से आमझरा नामक स्थान से माही नदी का उद्गम माना जाता है और यह नदी विध्याचल से 120 किलोमीटर बहने के बाद बांसवाड़ा जिले में प्रवेश करती है तथा डूंगरपुर होकर गुजरात में बहती हुई अरब सागर में मिल जाती है। पौराणिक संदर्भों में बताया गया है कि इस नदी के जल में स्नान करने से पुण्यार्जन होता है और यही कारण है कि इसे वागड़ के जाये जन्मे ‘महीसागर’ तीर्थ की संज्ञा देते है व इसका स्नान-ध्यान करते हुए इसके प्रति अगाध आस्थाओं को प्रदर्शित करते हैं।  

    बांध क्षीरसागर, नीर अमृत और नहरें बनी है धमनियां: 

    मध्यप्रदेश और प्रतापगढ़ से आती अथाह जलराशि बहकर समुद्र में व्यर्थ ही चली जाती गर इस पर माही बांध का निर्माण न हुआ होता। वागड़ अंचल के विकास के पुरोधा पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय हरिदेव जोशी के प्रयासों से अस्तित्व में आया माही बांध इस अंचल के निवासियों के मन में सृष्टि के पालनहार भगवान विष्णु का शयनस्थल स्वरूप क्षीरसागर की प्रतिकृति के रूप में स्थान बनाए हुए है। इस बांध में संग्रहित जल की एक-एक बूंद अमृतकण के समान है जो इस अंचल की भूमि को सिंचित कर जन-मन में प्राण फूंकने का उपक्रम कर रही है। जिस तरह मानव शरीर में शिराएं रक्त को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाकर जीवन का संचार करती है उसी तरह माही बांध की नहरें भी यहां के दूरस्थ ग्राम्यांचलों के खेतों तक पानी का संचार कर मानव जीवन का आधार बनी हुई हैं।  

    माही बजाज सागर परियोजना:  

    माहीडेम या माही बजाज सागर परियोजना के कारण ही आज वागड़ अंचल सरसब्ज है। स्वाधीनता सेनानी स्व. श्री जमनालाल बजाज की पुण्य स्मृति में इस बांध का नामकरण ‘माही बजाज सागर’ किया गया है । वागड़ अंचल की जीवनरेखा बनी माही बजाजसागर परियोजना एक बहुउद्देशीय परियोजना है और इस परियोजना से सिंचाई हेतु जल प्रवाह का शुभारम्भ तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी के कर कमलों द्वारा 1 नवम्बर, 1983 को किया गया था। माही नदी के जल उपयोग हेतु गुजरात एवं राजस्थान राज्यों के मध्य निष्पादित वर्ष 1966 के अनुबन्ध के अन्तर्गत माही बजाजसागर परियोजना का निर्माण किया गया है। मुख्य बांध की कुल भराव क्षमता 77 टीएमसी है एवं उपयोगी भराव क्षमता 60.45 टीएमसी है। अनुबंध के अनुसार बांध में संग्रहित उपयोगी जल में से 40 टीएमसी जल गुजरात राज्य एवं 16 टीएमसी जल राजस्थान राजय के उपयोग हेतु निर्धारित किया गया है। बांध का निर्माण गुजरात व राजस्थान के सहयोग से किया गया है। मुख्य बांध एवं सम्बन्धित निर्माण कार्यों की लागत में अनुबन्ध के अन्तर्गत गुजरात एवं राजस्थान का आर्थिक सहयोग 55ः45 प्रतिशत है।

    55 वर्ष पहले हुआ था शिलान्यास: 

     इस परियोजना का शिलान्यास वर्ष 1960 में किया गया था परंतु परियोजना का प्रारम्भिक निर्माण कार्य योजना आयोग द्वारा नवम्बर, 1971 में रुपये 31.36 करोड़ की स्वीकृति प्राप्त होने पर प्रारम्भ किया गया। प्रारम्भ में स्वीकृत योजना से सिंचाई सुविधा 44,170 हैक्टेयर भूमि में देने का प्रावधान था, जिसे बढ़ाकर वर्ष 1974-75 में 80,000 हैक्टेयर किया गया था एवं 140 मेगावाट विद्युत क्षमता के दो विद्युतगृहों के निर्माण का प्रावधान रखा गया। पुनः वर्ष 1984-85 में कमाण्ड क्षेत्र को 80,000 हैक्टेयर से विस्तारित कर 1,23,500 हैक्टेयर करते हुए इसमें बांसवाड़ा जिले की आनन्दपुरी, भूंगड़ा, जगपुरा एवं डूंगरपुर जिले की माही सागवाड़ा नहर को सम्मिलित किया गया, परन्तु केन्द्रीय जल आयोग द्वारा मई, 2002 में 80,000 हैटेयर कमाण्ड क्षेत्र के लिए स्वीकृति प्रदान की गई, जिसमें माही सागवाड़ा नहर के 0 से 8 किमी. तक के भाग एवं निठाउवा वितरिका को सम्मिलित किया गया।
    माही परियोजना का निर्माण तीन इकाईयों में किया गया था।  प्रथम इकाई के अन्तर्गत 435 मीटर लम्बे एवं अधिकतम 74.5 मीटर ऊंचे चुनाई एवं कंकरीट बांध का निर्माण किया गया है एवं दांये तथा बांये किनारों पर 2,674 मीटर लम्बा मिट्टी के बांध का निर्माण किया गया है, जिसकी अधिकतम ऊंचाई 43 मीटर है। द्वितीय इकाई में नहरों एवं वितरण प्रणाली के तहत मुख्य बांध की परिधि पर स्थित विद्युतगृह-प्रथम के द्वारा सिंचाई हेतु जल कागदी पिकअप वियर से निकलने वाली दांई व बांई मुख्य नहर तक पहुंचाने से संबंधित निर्माण का हुआ। दांई मुख्य नहर एवं इसकी वितरण शाखा नहरें क्रमशः 71.72 किमी. एवं 977.50 किमी. लम्बी हैं वहीं दांई मुख्य नहर एवं इसकी वितरण शाखा नहरों की लम्बाई क्रमशः 36.12 किमी. एवं 1028 किमी. हैं। बांध के कुल 77 टी.एम.सी. पानी मंे से 64 टी.एम.सी. पानी का उपभोग सामान्यतः सिंचाई के लिए किया जा रहा हैै और इससे ही दोनों जिलों के खेतों की प्यास बुझकर रिकार्ड अन्न उत्पादन हो रहा है। 

    पन बिजलीघरों का भी हुआ निर्माण: 

    माही परियोजना के निर्माण की तृतीय इकाई में विद्युत गृह एवं सम्बन्धित कार्य संपादित किए गए। इसके तहत मुख्य बांध की परिधि पर सैडल बांध नम्बर-5 पर स्थित सतही विद्युत गृह प्रथम एवं ग्राम लीलवानी के समीप सतही विद्युत  गृह द्वितीय का निर्माण किया गया है। इस इकाई के अन्तर्गत विद्युत गृह प्रथम से प्राप्त जल को सिंचाई हेतु कागदी पिकअप वियर तक पहुंचाने के लिए 1462 मीटर लम्बी सुरंग एवं 3090 मीटर लम्बी नहर का निर्माण किया गया है।  विद्युत गृह-प्रथम का निर्माण कार्य मई 1978 में प्रारम्भ हुआ था तथा इसकी कुल लागत 68 करोड़ रूपये है । विद्युत गृह -द्वितीय पर 1989 में ऊर्जा उत्पादन आरम्भ हुआ तथा उसकी लागत 120 करोड़ रूपये है ।  यह राजस्थान का पहला स्वदेशी मशीनों द्वारा निर्मित पन बिजली घर है । पावर हाउस-प्रथम पर 25 मेगावाट की 2 मशीनें है, तथा उनकी कुल क्षमता 50 मेगावाट है । पावर हाउस-द्वितीय, बागीदौरा पर 2 मशीनें हैं,तथा उनकी कुल क्षमता  90 मेगावाट है । इस प्रकार माही हाईडल प्रोजेक्ट की कुल क्षमता 140 मेगावाट है । पावर हाउस-प्रथम का राष्ट्र को समर्पण 13 फरवरी 1986 को तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री हरिदेव जोशी के कर कमलों से हुआ था ।  माही बांध की बदौलत बांसवाड़ा जिला रिकार्ड बिजली उत्पादन करने वाला जिला भी बना है और अब तक माही के पानी के उपयोग के माध्यम से जिले के स्थापित दोनों जल विद्युत गृहों से करोड़ यूनिट बिजली का उत्पादन हुआ है। 
निश्चय ही माही मैया इस अंचल की जीवनरेखा के रूप जहां सिंचाई के लिए पर्याप्त जलराशि मुहैया करवा रही है वहीं बिजली उत्पादन के रूप में भी आम जनजीवन को रोशन करने का उदात्त उपक्रम कर रही है। माही मैया के इसी उपक्रम को स्मरण करने के पुण्य पर्व माही महोत्सव के शुभ मौके पर समूचे वागड़ अंचल को बधाई व शुभकामनाएं। 
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कमलेश शर्मा 
सहायक निदेशक, 
सूचना एवं जनसंपर्क विभाग डूंगरपुर
मोबाईल 9414111123
  फोटो - 
01: माही बांध का निर्माणाधीन कार्य । 
02: निर्माणाधीन माही बांध पर कार्यरत श्रमिक।  
03-06: निर्माणाधीन माही बांध।   
07 तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री शिवचरण माथुर 20 सितंबर 1984 को विद्युत परियोजना की स्थापना अवसर पर । 
 08: गेमन पुल पर स्थित मंदिर में माही मैया की प्रतिमा। 
09: माही बांध से निकलने वाली जलराशि।
10: माही बांध का विहंगम दृश्य। 
11. माही बांध का चाचाकोटा स्थित बेकवाटर व पसरी हरियाली का विहंगम दृश्य।
12. माही बांध के बैकवाटर में हरितिमायुक्त टापू। 
13. माही महोत्सव के तहत पूर्व वर्षों में आयोजित नौकायन प्रतियोगिता का दृश्य। 
14. माही महोत्सव के तहत पूर्व वर्षों में आयोजित सांस्कृतिक निशाओं के दृश्य। 



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माही महोत्‍सव की शुभकामनाएं